योगेश्वर श्रीकृष्ण ने दिनचर्या के विषय में कुछ ऐसी बात कही है । Bhagavad Gita | Surakshit Goswami
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spirituality की वीडियो को सब्सक्राइब करेआज के एपिसोड में हमने चर्चा की है कि योगेश्वर श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भागवत गीता में दिनचर्या, आहार-विहार के विषय में क्या उपदेश दिया है। हम सभी जानते है कि गीता में हर छोटे से छोटे कर्म की व्याख्या की गयी है। गीता सिखाती है कि भोजन का हमारे नैतिक और आध्यात्मिक स्वभाव से गहरा सम्बन्ध है। जो भोजन हमारे शरीर को पुष्ट और संवर्द्धित करता है, उसका हमारे मन पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। इसीलिए हमारे यहां कहावत भी है - जैसा अन्न वैसा मन और जैसा पानी वैसी वाणी । भोजन का हमारे प्राण और मन दोनों से सीधा संबंध है। भगवद्गीता के छठे अध्याय के 17 वें श्लोक में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं - "युक्ताहारविहारस्य युक्ताचेष्टस्य कर्मसु। युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवति दुखहा।" अर्थात् जिसका आहार और विहार संतुलित हो, जिसका आचरण अच्छा हो, जिसका शयन, जागरण व ध्यान नियम नियमित हो, उसके जीवन के सभी दुख स्वत: ही समाप्त हो जाते हैं।